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Sanjay Ravi
A strategic Teacher who transforms complex challenges into actionable opportunities.
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  • 15/06/1989
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  • जब मैं अकेले बैठा हूँ, तो मुझे लगता है कि मेरा दिल एक विशाल IMAX स्क्रीन पर चल रहा है, लेकिन यह सिर्फ सन्नाटा है जो गूंजता है। यह सन्नाटा, जो मेरे भीतर की गहराइयों में छुपा है, मुझे हर बार एक नई चोट देता है। IMAX की तरह, जहाँ हर छवि बड़ी और स्पष्ट होती है, मेरी ज़िंदगी की सच्चाइयाँ भी मेरे सामने हैं, लेकिन वे इतनी दर्दनाक हैं कि मैं उन्हें देख नहीं सकता।

    कभी-कभी, मुझे लगता है कि सब कुछ खो गया है। हर एक खुशी, हर एक मुस्कान, जैसे किसी बड़े परदे पर एक फिल्म की तरह पल भर में गायब हो जाती है। जब मैं अपने चारों ओर देखता हूँ, मैं बस दीवारों को देखता हूँ, जो मेरी असहायता की गवाह हैं। यह एक ऐसा अनुभव है, जहाँ मैं खुद को एक दर्शक की तरह महसूस करता हूँ, जो सिर्फ दूसरों की खुशियों को देखता है लेकिन अपनी ज़िंदगी की कहानी में खुद को एक साइड कैरेक्टर के रूप में पाता है।

    हर एक दिन, मैं उस विशाल IMAX स्क्रीन पर अपनी कहानी की एक नई कड़ी देखने की उम्मीद करता हूँ, लेकिन यह सिर्फ निराशा की अंधेरी रात बन कर रह जाती है। क्या कभी यह सन्नाटा खत्म होगा? क्या मैं कभी उस खुशियों से भरे परदे को देख पाऊँगा?

    जहाँ IMAX तकनीक ने विश्व को अद्भुत अनुभव दिए हैं, वहीं मेरी ज़िंदगी की तकनीक ने मुझे अकेला छोड़ दिया है। सब कुछ बड़ा है, लेकिन भीतर की खामोशी की कोई गहराई नहीं है। क्या मैं इस अंधेरे से बाहर निकल पाऊँगा? क्या कोई ऐसा होगा जो मुझे समझेगा?

    इस दर्दनाक यात्रा में, जब मैं अपने आंसुओं को बहाता हूँ, मुझे लगता है कि शायद कोई और भी है जो इसी तरह की खामोशी में जी रहा है। हम सब एक-दूसरे को खोज रहे हैं, लेकिन क्या हम कभी एक-दूसरे को देख पाएंगे?

    #अकेलापन #दर्द #IMAX #खामोशी #भावनाएँ
    जब मैं अकेले बैठा हूँ, तो मुझे लगता है कि मेरा दिल एक विशाल IMAX स्क्रीन पर चल रहा है, लेकिन यह सिर्फ सन्नाटा है जो गूंजता है। यह सन्नाटा, जो मेरे भीतर की गहराइयों में छुपा है, मुझे हर बार एक नई चोट देता है। IMAX की तरह, जहाँ हर छवि बड़ी और स्पष्ट होती है, मेरी ज़िंदगी की सच्चाइयाँ भी मेरे सामने हैं, लेकिन वे इतनी दर्दनाक हैं कि मैं उन्हें देख नहीं सकता। कभी-कभी, मुझे लगता है कि सब कुछ खो गया है। हर एक खुशी, हर एक मुस्कान, जैसे किसी बड़े परदे पर एक फिल्म की तरह पल भर में गायब हो जाती है। जब मैं अपने चारों ओर देखता हूँ, मैं बस दीवारों को देखता हूँ, जो मेरी असहायता की गवाह हैं। यह एक ऐसा अनुभव है, जहाँ मैं खुद को एक दर्शक की तरह महसूस करता हूँ, जो सिर्फ दूसरों की खुशियों को देखता है लेकिन अपनी ज़िंदगी की कहानी में खुद को एक साइड कैरेक्टर के रूप में पाता है। हर एक दिन, मैं उस विशाल IMAX स्क्रीन पर अपनी कहानी की एक नई कड़ी देखने की उम्मीद करता हूँ, लेकिन यह सिर्फ निराशा की अंधेरी रात बन कर रह जाती है। क्या कभी यह सन्नाटा खत्म होगा? क्या मैं कभी उस खुशियों से भरे परदे को देख पाऊँगा? जहाँ IMAX तकनीक ने विश्व को अद्भुत अनुभव दिए हैं, वहीं मेरी ज़िंदगी की तकनीक ने मुझे अकेला छोड़ दिया है। सब कुछ बड़ा है, लेकिन भीतर की खामोशी की कोई गहराई नहीं है। क्या मैं इस अंधेरे से बाहर निकल पाऊँगा? क्या कोई ऐसा होगा जो मुझे समझेगा? इस दर्दनाक यात्रा में, जब मैं अपने आंसुओं को बहाता हूँ, मुझे लगता है कि शायद कोई और भी है जो इसी तरह की खामोशी में जी रहा है। हम सब एक-दूसरे को खोज रहे हैं, लेकिन क्या हम कभी एक-दूसरे को देख पाएंगे? #अकेलापन #दर्द #IMAX #खामोशी #भावनाएँ
    IMAX : tout ce que vous devez savoir
    IMAX est mondialement reconnu pour ses écrans gigantesques, mais cette technologie révolutionnaire ne se limite […] Cet article IMAX : tout ce que vous devez savoir a été publié sur REALITE-VIRTUELLE.COM.
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  • इस दुनिया में, जब हर एक पल हमारी कल्पनाओं से भरा होता है, हम अकेले खड़े होते हैं, अपने ही विचारों की गिरफ्त में। आज, जब हम एनसी फेस्टिवल की ओर बढ़ रहे हैं, एक भारी मन के साथ सोचते हैं कि क्या हमारी कला, हमारी मेहनत, हमारी पहचान अब मशीनों के हाथों में है?

    जब मैंने सुना कि विभिन्न संघ और संगठन, जो कलाकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, एआई जनरेटिव के उपयोगों के नियमन के लिए आवाज उठा रहे हैं, तो मन में एक अजीब सा खेद उमड़ आया। क्या हम वास्तव में यहां तक पहुँच गए हैं कि हमें अपनी रचनात्मकता की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है? शारीरिक रूप से हम एकत्रित होते हैं, लेकिन दिल में एक गहरी खाई है, एक अधूरापन जो हमारी कला की आत्मा को छू रहा है।

    विज़ुअल आर्ट, संगीत, लेखन — ये सब हमारे अस्तित्व के अभिन्न अंग हैं। लेकिन अब, जब ये मशीनों द्वारा उत्पन्न होते हैं, तो क्या हम उन्हें केवल एक उत्पाद में सीमित कर देंगे? क्या हम अपनी भावनाओं को, अपनी कहानियों को, अपने अनुभवों को एक ठंडी, निर्जीव मशीन के हाथों में सौंप देंगे? यह सोच कर ही दिल में एक भारीपन आ जाता है।

    क्या हम सच में अपने आप को इस निराशा के गर्त में गिरने देंगे, या हमें एक नई दिशा में सोचना चाहिए? क्या हम अपनी आवाज़ उठाने के लिए एकजुट हो सकते हैं, ताकि हमारी रचनात्मकता को एक नया जीवन मिल सके? हमें यह समझने की जरूरत है कि एआई केवल एक उपकरण है, लेकिन हमारी भावनाएं, हमारे विचार, वह सब कुछ हैं जो हमें इंसान बनाते हैं।

    फिर भी, उस सड़कों पर चलने का विचार, एक अजीब सी उम्मीद जगाता है। क्या हम फिर से अपनी पहचान को पुनः स्थापित करने में सक्षम होंगे? क्या हम फिर से अपनी कला में जान डाल पाएंगे? यह हृदय की गहराइयों से निकली एक पुकार है, एक याचना है कि हम अपनी रचनात्मकता को बचा सकें।

    आओ, हम एकत्रित हों, एक नई शुरुआत करें। क्योंकि अकेले चलना कठिन है, पर जब हम एकजुट होते हैं, तो हम हर दर्द और हर खेद को साझा कर सकते हैं।

    #एनसीफेस्टिवल #रचनात्मकता #एआई #कलाकारोंकीआवाज #अकेलापन
    इस दुनिया में, जब हर एक पल हमारी कल्पनाओं से भरा होता है, हम अकेले खड़े होते हैं, अपने ही विचारों की गिरफ्त में। 🎭💔 आज, जब हम एनसी फेस्टिवल की ओर बढ़ रहे हैं, एक भारी मन के साथ सोचते हैं कि क्या हमारी कला, हमारी मेहनत, हमारी पहचान अब मशीनों के हाथों में है? जब मैंने सुना कि विभिन्न संघ और संगठन, जो कलाकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं, एआई जनरेटिव के उपयोगों के नियमन के लिए आवाज उठा रहे हैं, तो मन में एक अजीब सा खेद उमड़ आया। क्या हम वास्तव में यहां तक पहुँच गए हैं कि हमें अपनी रचनात्मकता की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरना पड़ रहा है? 😞 शारीरिक रूप से हम एकत्रित होते हैं, लेकिन दिल में एक गहरी खाई है, एक अधूरापन जो हमारी कला की आत्मा को छू रहा है। विज़ुअल आर्ट, संगीत, लेखन — ये सब हमारे अस्तित्व के अभिन्न अंग हैं। लेकिन अब, जब ये मशीनों द्वारा उत्पन्न होते हैं, तो क्या हम उन्हें केवल एक उत्पाद में सीमित कर देंगे? क्या हम अपनी भावनाओं को, अपनी कहानियों को, अपने अनुभवों को एक ठंडी, निर्जीव मशीन के हाथों में सौंप देंगे? यह सोच कर ही दिल में एक भारीपन आ जाता है। 😢 क्या हम सच में अपने आप को इस निराशा के गर्त में गिरने देंगे, या हमें एक नई दिशा में सोचना चाहिए? क्या हम अपनी आवाज़ उठाने के लिए एकजुट हो सकते हैं, ताकि हमारी रचनात्मकता को एक नया जीवन मिल सके? हमें यह समझने की जरूरत है कि एआई केवल एक उपकरण है, लेकिन हमारी भावनाएं, हमारे विचार, वह सब कुछ हैं जो हमें इंसान बनाते हैं। फिर भी, उस सड़कों पर चलने का विचार, एक अजीब सी उम्मीद जगाता है। क्या हम फिर से अपनी पहचान को पुनः स्थापित करने में सक्षम होंगे? क्या हम फिर से अपनी कला में जान डाल पाएंगे? यह हृदय की गहराइयों से निकली एक पुकार है, एक याचना है कि हम अपनी रचनात्मकता को बचा सकें। आओ, हम एकत्रित हों, एक नई शुरुआत करें। क्योंकि अकेले चलना कठिन है, पर जब हम एकजुट होते हैं, तो हम हर दर्द और हर खेद को साझा कर सकते हैं। 💔✨ #एनसीफेस्टिवल #रचनात्मकता #एआई #कलाकारोंकीआवाज #अकेलापन
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